ड्रग मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन प्रदेश तेजी से फार्मा हब बनने की दिशा में बढ़ रहा है प्रदेश में फार्मा कंपनियों का विस्तार हो रहा है और यहां से निर्मित दवाएं विश्व के अनेक देशों में निर्यात की जा रही है उत्तराखंड के फार्मा हब बनने की दिशा में कुछ बाहरी प्रदेशों के लोग अडंगा लगाने का प्रयास कर रहे हैं और यहां की कंपनियों के नाम पर नकली दवाएं बना रहे हैं उन्होंने कहा कि ऐसे नकली दवा निर्माताओं के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए।

एसोसिएशन के मुताबिक नकली दवाओं और नॉन स्टैंडर्ड क्वालिटी (एनएसक्यू) ड्रग में अंतर होता है। एनएसक्यू दवाएं नकली नहीं होती है उनमें महज तकनीकी कमी होती है। देहरादून स्थित उत्तरांचल प्रेस क्लब में मीडिया से बात करते हुए ड्रग मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रमोद कालानी ने बताया कि प्रदेश में पूर्ण रूप से गुणवत्तापूर्ण दवाओं का निर्माण हो रहा है फार्मा कंपनियां दवा उत्पादन के सभी निर्धारित मापदंडों का पालन कर रही है उनके मुताबिक अच्छी दवाएं तय मानकों और वैज्ञानिक प्रक्रियाओं के अनुसार बनाई जाती हैं।

एसोसिएशन के सदस्य पीके बंसल ने बताया कि अधिकांश दवाएं पीएच में अंतर होने, डिसइंटीग्रेशन टेस्ट में विलंब, डिसॉलूशन टेस्ट में बदलाव या लेबलिंग की गलती से होती है। यह दवा किसी भी तरह से मरीज के लिए हानिकारक नहीं होती है बस इसमें तकनीकी कमी होती है। एसोसिएशन के महासचिव संजय सिकारिया के मुताबिक हाल में जिन दवाओं के 27 सैंपल फेल होने की बात है वह भी इन मामूली तकनीक के आधार पर ही फेल किये गये हैं हमें 28 दिन में हायर टेस्टिंग लैब में इसकी जांच करने की अपील करनी होती है मुख्य टेस्टिंग लैब कोलकत्ता में है यदि वहां से भी सैंपल फेल होता है तो ही दवा को सब स्टैंडर्ड या नकली बताया जा सकता है।

एसोसिएशन के सदस्य रमेश जैन के मुताबिक क्लाइमेट चेंज का असर भी दवाओं पर होता है उनके मुताबिक कश्मीर में अलग मौसम होता है और तटीय इलाकों में दूसरा तो नार्थ-ईस्ट में अलग दवा एक ही होती है कैमिस्ट यदि इसे धूप में रखेगा तो इसकी गुणवत्ता प्रभावित होगी। उन्होंने कहा कि दवाओं को ठंडी जगह और अंधेरे में रखने की सलाह दी जाती है लेकिन सभी कैमिस्ट इसका पालन नहीं करते।

एसोसिएशन के अध्यक्ष ने कहा कि मीडिया महज सेंटर ड्रग्स स्टेंडर्ड कंट्रोल आर्गनाइजेशन (सीडीएससीओ) की प्राथमिक रिपोर्ट के आधार पर ही दवाओं को नकली बताकर समाचार प्रकाशित या चैनल पर दिखा देते हैं इससे कंपनी की छवि और ब्रांड पर प्रतिकूल असर पड़ता है। जबकि मीडिया से यह उम्मीद की जाती है कि कोलकत्ता स्थिति सेंट्रल लेबोरिटी (सीडीएल ) से जांच रिपोर्ट मिलने के बाद ही सही समाचार प्रकाशित किया जाएं फार्मा कंपनी की दवाओं को एनएसक्यू के आधार पर नकली न करार दिया जाए। इससे कंपनी की ब्रांड और छवि खराब होती है।

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