देहरादून। राजकीय दून मेडिकल कॉलेज से मांगी गई आरटीआई ने एक बार फिर चौंका दिया है दून मेडिकल कॉलेज से मिली जानकारी के अनुसार पिछले चार सालों में 59 में प्रोफेसर, असिस्टेंट प्रोफेसर और एसोसिएट प्रोफेसर ने अपनी सरकारी नौकरी से त्यागपत्र दिया है और ये जो आंकड़े आए है बाकी हैरान कर देने वाले है कई वजह है जिनको देखते हुए सरकारी डॉक्टर्स का अस्पताल से मोह भंग हुआ है हम आपको बताएंगे किस किस विभाग से ये चौंकाने वाले आंकड़े आए है।

आपको बात दे कि पिछले पांच सालों में राजकीय दून मेडिकल कॉलेज के अलग अलग विभागों में तकरीबन 194 डॉक्टर्स ने ज्वॉइन किया उसके बाद अगर देखा जाए तो पिछले चार सालों में ही तकरीबन 59 डॉक्टर्स ने अलग अलग विभागों से त्यागपत्र देकर सरकारी सेवा से मुक्त हो गए है।

आपको बता दे कि 1 अप्रैल 2021 से 30 अगस्त 2025 के बीच तकरीबन 194 डॉक्टर्स ने ज्वॉइन किया है जिसमें सबसे ज़्यादा ऑब्स एंड गायनी में 14 डॉक्टर्स ने अलग अलग पदों पर ज्वाइन किया है जबकि इन पांच सालों में सबसे कम पीएमआर और एफएमटी में सिर्फ एक एक ही ज्वाइनिंग हुई है। वहीं छोड़ने वालों की संख्या में खासा इज़ाफ़ा हुआ है।

वही 10 मई 2022 से 10 सितंबर 2025 तक राजकीय दून मेडिकल कॉलेज से 59 डॉक्टर्स ने अलग अलग विभागों से त्यागपत्र दिए है जिनमे सबसे ज़्यादा एनेस्थीसिया विभाग से 8 डॉक्टर्स ने नौकरी छोड़ी है वहीं पेडियाट्रिक्स से 5 डॉक्टर्स छोड़कर गए है वहीं फिजियोलॉजी से 4 जनरल सर्जरी से 4 ईएनटी से 4 मेडिसिन से 4 सर्जरी से 3 ऑब्स एंड गायनी से 3 ब्लड बैंक से 3 कम्युनिटी मेडिसिन से 2 प्लास्टिक सर्जरी से 1 वही आर्थोपेडिस से 1 टीबी एंड चेस्ट से 2 माइक्रोबायोलॉजी से 2 पैथोलॉजी से 2 एनाटॉमी से 1 साइक्रेटी 1 पीएमआर वहीं 1 नेत्र विभाग से 1 डेंटिस्ट्री से और 2 माइक्रोबायोलॉजी से शामिल है।

जाने वजह

आपको बता दे कि इन पिछले 4 सालों में इतने डॉक्टर्स का त्यागपत्र देना ज़रूरी चिंता का विषय है लेकिन इसके पीछे बड़ी वजह भी है जिसके चलते सरकारी अस्पतालों से डॉक्टर्स का मोहभंग हो रहा है कहीं ना कहीं डॉक्टर्स की सैलरी भी एक बड़ी वजह से जिसके चलते सरकारी डॉक्टर्स लंबे समय तक अपनी सेवाएं देने में समर्थ नहीं है क्योंकि आज के समय में बड़े बड़े मेडिकल कॉलेज खुल गए है जहां डॉक्टर्स को अच्छी सैलेरी मिलती है इसके चलते भी ज़्यादातर डॉक्टर्स सरकारी नौकरी छोड़ प्राइवेट अस्पतालों, मेडिकल कॉलेज में चले गए है। इसके साथ साथ डॉक्टर्स की ये भी शिकायत अमूमन देखी जाती है बहुत बार सार्वजनिक अवकाश के चलते भी डॉक्टर्स को ओपीडी करनी पड़ती है जिसको लेकर उनमें नाराजगी भी रहती है इसके साथ साथ कई विभागों में डॉक्टर्स की कमी भी है जिसके चलते वर्कलोड बढ़ जाता है ये भी वजह कही ना कही त्यागपत देने की बनती जा रही है।

एनपीए भी बड़ी वजह

आपको बता दे कि कई राज्य में सरकारी डॉक्टर्स के लिए एनपीए में ऑब्शन होता है सरकारी डॉक्टर्स चाहे तो नॉन प्रैक्टिसिंग अलाउंस ले सकते है और चाहे तो नहीं ले ये उनकी मर्ज़ी के ऊपर होता है ऐसे में सरकारी डॉक्टर्स अपनी नौकरी में समय देने के बाद अपना क्लीनिक और कही भी प्रैक्टिस कर सकते है ये कई राज्यों में अभी भी लागू है जिसमें राजस्थान, मध्य प्रदेश, केरल के साथ कई राज्य ऐसे हैं जहां एनपीए डॉक्टर्स की मर्ज़ी पर निर्भर है लेकिन उत्तराखंड में सभी सरकारी डॉक्टर्स के लिए एनपीए लेना अनिवार्य है जिसके चलते ये डॉक्टर्स बाहर प्रैक्टिस नहीं कर पाते ये भी छोड़ने की एक बड़ी वजह सरकारी मेडिकल कॉलेज में बन गई है और माना ये भी जाता है ट्रांसफर नीति में भी बदलाव की ज़रूरत है।

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